before I sleep

"The woods are lovely, dark and deep. But I have promises to keep, and miles to go before I sleep." - Robert Frost

"Our minds are finite, and yet even in these circumstances of finitude we are surrounded by possibilities that are infinite, and the purpose of life is to grasp as much as we can out of that infinitude." - Alfred North Whitehead

Monday, May 22, 2006

कुछ यादें - Few memories

It is hard to even think of a life without memories. I always wish, try and promise myself to live every moment of this life to the fullest. These memories help me smile even in my worst times. People think if I am nuts because I sometimes even laugh while I am sitting alone remembering some beautiful moment. He he...

Recently, I found this poem in my diary which I had written quite a while back. I was doing my engineering or rather killing my time at hostel-6. It is about a person who is enjoying a rainy day remembering the story of how he came to know about his love of life and married thereafter....pretty dramatic huh!!! Do let me know how you felt after reading it.

कुछ यादें

इक दिन बादलों की छाई हुई थी घटा घनघोर,
हो के मदमस्त नाच उठे छत पर मनमोहक मोर,
जाने क्यों लगा कि ले गया मन का चैन कोई चित्तचोर,
रह गया मैं स्तब्ध हत्त्प्रभ, मचा भी न सका शोर ।

कुछ पल के लिए हुआ परेशान,
क्योंकि ढूँढ पाना उसको नहीं था आसान,
अचानक हुआ ये अहसास,
शायद हो वो यहीं कहीं आस पास ।

परेशानी और डर ने था मन को घेरा,
कि कहीं किसी ने हम पर जादू-मन्तर तो नहीं है फेरा,
ऐसे में उस खास दोस्त का आना,
और प्यार से बैठा के समझाना ।

कि होता है सभी को ज़िन्दगी में एक बार,
लुट जाती है रातों कि नींद और दिल का करार,
ऐसी हालत में ठीक नहीं चुप्पी साधे रहना,
ना तो कभी ना लौटेगा दिल का सुख और चैना ।

नाम न जानूं पता न जानूं, अजब उलझी ये गुत्थी है,
सुलझाने कि कोशिश में, उलझ जाती ये उतनी है ।

पर मन में उसकी अधूरी सी छवी है, कि मानो
सर्द मौसम के धुंधलाए शीशे के पार खडी है,
क्यों मैं अपने आप को झुटला रहा हूँ,
जाने क्यों सच्चाई से पीछा छुडा रहा हूँ ।

हिम्मत जुटाई बढ़ कर शीशे को पौंछने की,
बोला कोई, नहीं जरूरत अब कुछ सोचने कि,
देर न कर, अपनी तृष्णा को शांत कर ले,
हठी न बन, इकरार कर ले ।

हटाते ही वो पानी कि बूँदें,
सिर चकरा कर लगा घूमने,
ये क्या हो गया था मुझको कि,
अब तक पहचान भी न सका उसको ।

वो कहते हैं, देर आए दुरूस्त आए,
देख कर उन्हें अगले दिन, थोड़ा शरमाए घबराए,
ईशारे कुछ ना कुछ तो कह गए,
चुप चाप ही हम खड़े रह गए ।

अचानक प्यार से किसी ने पुकारा,
कहीं तो ध्यान भटक गया है तुम्हारा,
बारिश का आनंद तो लो ही,
पर गरमा-गरम चाय-पकोड़े चखो तो सही ।

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