धर्म
जानूं मैं कि आत्मन के बोध से इश्वर में समा जाऊं
चाहूँ मैं कि ना हिंदू ना मुस्लिम ना ही इसाई कहलाऊं
जानूं मैं कि ख़ुद को जान लूँ तो खुदा को पाऊं
चाहूँ मैं कि ना हिंदू ना मुस्लिम ना ही इसाई कहलाऊं
जानूं मैं कि परछाईं को थाम इशु का सहारा पाऊं
चाहूँ मैं कि ना हिंदू ना मुस्लिम ना ही इसाई कहलाऊं
जानूं मैं कि साथ अंधेरे के रौशनी से पार जाऊं
चाहूँ मैं कि ना हिंदू ना मुस्लिम ना ही इसाई कहलाऊं
जानूं मैं कि हर धर्म चाहे ख़ुद से बाहर आ जाऊं
ताकि ना हिंदू ना मुस्लिम ना ही इसाई कहलाऊं
2 Comments:
काश यह बात हर कोई समझ पता तो शायद इस समाज मे कोई इर्षा का भाव नही होता और एक इंसान दुसरे को मारने के लिए नही भागता.
बहुत ही सही ढंग से बताये गया है की जीवन का सार ख़ुद को जान कर उस देव्या ज्योति में लीन होना है
कुछ जानकारों ने इसे इंसानियत का पाठ समझा है किंतु मेरी दृष्टि से ये उससे अलग है| ख़ुद को खत्म करके इंसानियत ख़ुद-बखुद जन्म ले लेती है परन्तु इसका विपरीत नहीं होता|
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